प्रथम खंड
:
7.
हिंदुस्तानियों ने क्या किया ?
इस प्रकार नेटाल इंडियन कांग्रेस का कार्य स्थिर और स्थायी हो गया। मैंने लगभग
ढाई साल नेटाल में बिताए और इस अरसे में अधिकतर राजनीतिक कार्य ही किया। अब
मैंने सोचा कि अगर मुझे और ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में रहना हो, तो अपने परिवार
को हिंदुस्तान से लाकर साथ रखना जरूरी है। हिंदुस्तान की एक छोटी सी यात्रा कर
आने का भी मेरा मन हुआ। यह इच्छा भी मन में थी कि हिंदुस्तान में रहते हुए
भारतीय नेताओं को नेटाल में और दक्षिण अफ्रीका के अन्य उपनिवेशों में रहने
वाले हिंदुस्तानियों की स्थिति की संक्षिप्त कल्पना करा दी जाए। कांग्रेस ने
मुझे छह महीने की छुट्टी दी और मेरी जगह पर नेटाल के प्रसिद्ध व्यापारी स्व.
आदमजी मियाँ खान उसके मंत्री नियुक्त हुए। उन्होंने कांग्रेस का कार्य बड़ी
कुशलता से चलाया। वे अँग्रेजी काफी अच्छी जानते थे और अनुभव से अँग्रेजी का
अपना कामचलाऊ ज्ञान उन्होंने बहुत बढ़ा लिया था। गुजराती का अध्ययन उनका
साधारण था। उनका व्यापार मुख्यतः हबशियों में चलता था, इसलिए जूलू भाषा का और
उनके रीति-रिवाजों का उन्हें बड़ा ज्ञान हो गया था। उनका स्वभाव शांत और बहुत
मिलनसार था। वे जरूरी हो उतना ही बोलते थे। यह सब लिखने का उद्देश्य इतना ही
है कि जिम्मेदारी का पद सँभालने के लिए जितनी आवश्यकता अँग्रेजी भाषा के ज्ञान
की अथवा दूसरी बड़ी विद्वत्ता की होती है, उससे कहीं अधिक आवश्यकता सच्चाई,
शांति, सहनशीलता, दृढ़ता, समय-सूचकता, और व्यावहारिक बुद्धि की होती है। जिस
मनुष्य में इन सुंदर और उदात्त गुणों का अभाव हो, उसमें उत्तम कोटि की
विद्वत्ता हो तो भी सामाजिक कार्य में उसका कोई मूल्य नहीं है।
1896 के मध्य में मैं हिंदुस्तान लौटा। मैं कलकत्ते के रास्ते होकर आया,
क्योंकि उस समय नेटाल से कलकत्ता जाने वाले जहाज आसानी से मिलते थे। गिरमिटिया
मजदूर कलकत्ते से बंबई आते हुए रास्ते में मैं ट्रेन चूक गया, इसलिए एक दिन
मुझे अलाहाबाद रुकना पड़ा। वहीं से मैंने अपना कार्य शुरू कर दिया। मैं
'पायोनियर' के श्री चेजनी से मिला। उन्होंने मेरे साथ सौजन्यतापूर्वक बातें
कीं। उन्होंने ईमानदारी से मुझे बता दिया कि उनकी सहानुभूति उपनिवेशों में बसे
हुए गोरों के साथ है। परंतु यदि मैं कुछ लिखूँ तो उसे पढ़ जाने का और अपने
पत्र में उस टिप्पणी लिखने का वचन उन्होंने दिया। इसे मैंने काफी माना।
हिंदुस्तान में रहते हुए मैंने दक्षिण अफ्रीका के हिंदुस्तानियों की स्थिति पर
प्रकाश डालने वाली एक पुस्तिका लिखी। उस पर लगभग सारे ही भारतीय अखबारों ने संपादकीय टिप्पणी...
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